*बहुत महत्वपूर्ण लेकिन उपेक्षा और दुर्दशा का शिकार “सालवई किला”….*
@डॉ.आशीष द्विवेदी.
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ग्वालियर क्षेत्र (उत्तरी मध्यभारत का इतिहास तो वृहत्तर भारतवर्ष में सबसे महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में प्राचीनतम और महत्वपूर्ण हेरिटेज, मौन्यूमेंट, स्मारक भी बहुत से हैं। लेकिन अधिकतर ही उपेक्षा और दुर्दशा के शिकार हैं।
प्रशासन तो उनके महत्वपूर्ण इतिहास और महत्व से अंजान है ही। स्थानीय लोग भी अंजान ही हैं।
ऐसा ही एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान और किला है। *”सालवई”*।
डबरा-भितरवार मार्ग पर दाईं ओर स्थित है सालवई गांव। वहीं पर यह किला स्थित है। किले का निर्माण तो लगभग 16–17 वीं सदी में किसी जाट सरदार या शासक द्वारा करवाने का पता चलता है। जो कालांतर में शिंदे शासकों के पास आ गया था। इस किले के साथ भारत के आधुनिक इतिहास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य जुड़ा हुआ है। जिसे लेखकों ने और सरकारी विभागों ने उपेक्षा पूर्ण रवैये के साथ एक ओर डाल दिया है।
मराठा महावीर योद्धा महादजी (माधवराव प्रथम) ने प्रथम मराठा-आंग्ल युद्ध में अंग्रेजों को बुरी तरह हराया था। अंग्रेजों ने हार के बाद संधि की प्रार्थना की थी। महादजी शिंदे ने अपने किले सालवई को संधि स्थान के रूप में चुना था। इस किले में मराठों ने अंग्रेजों से संधि की थी। जिससे अंग्रेजों ने भारत के एक बहुत बड़े भाग पर महादजी शिंदे का अधिकार स्वीकार कर लिया था। लेकिन अंग्रेजों को भारत में जमने का भी जीवनदान (अवसर) मिल गया था। इस प्रकार यह संधि और गवाह किला, दोनो भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण हैं।
*”पुरातत्व और पर्यटन विभागों , सरकार और प्रशासन को इस किले और क्षेत्र की तरफ समुचित ध्यान देकर, इसका संरक्षण और मरम्मत कर, इसका इतिहास और महत्व फैलाना चाहिये। जिससे यह एक महत्वपूर्ण टूरिस्ट स्थान बन सकता है। जो बहुत महत्वपूर्ण इतिहास से लोगों का परिचय करायेगा।”*